110 साल बाद बना है अद्भुत संयोग, दो नवरात्रि पड़ेंगे एक साथ, ये काम करने से होगी माँ की कृपा

1442

नवरात्रि देवी दुर्गा को समर्पित पर्व है। जिसमे देवी के नौ अलग अलग स्वरूपों का पूजन किया जाता है। नवरात्रि के दसवें दिन विजयदशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि को सभी नवरात्रों में सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए इसे महानवरात्रि भी कहा जाता है। आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से विजया दशमी तक होती है |शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती मां दुर्गा की उपासना आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल मास की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाया जाता है।

नवरात्र आरंभ अमावस्या युक्त प्रतिपदा में वर्जित और द्वितीया युक्त प्रतिपदा में शुभ है। इस लिहाज से शारदीय नवरात्र आज (दस अक्टूबर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा) से शुरू हो रहा है। व्रत-पूजन विधान 17 अक्टूबर यानी महानवमी तक चलेंगे और 18 अक्टूबर की दोपहर में पूर्णाहुति व पारन किया जाएगा। ऐसे में इस बार भी शारदीय नवरात्र संपूर्ण नौ दिनों का होगा।17 को सूर्य तुला राशि में प्रवेश करेंगे और ऐसे में नौ कन्याओं को खीर-पूड़ी का भोजन कराना बहुत लाभकारी सिद्ध होगा|

हमारे ज्योतिषों के अनुसार बताया जा रहा है की इस बार शारदीय नवरात्र खास होंगे। कारण है कि 10 अक्टूबर से शुरू होने वाले नवरात्र पर 110 साल बाद अद्भुत संयोग बनने जा रहा है। ऐसे में एक ही दिन दो नवरात्र होने के बावजूद यह पूरे नौ दिन चलेंगे। दूसरे नवरात्र का आगाज चित्रा नक्षत्र में होगा व श्रवण नक्षत्र में महानवमी का आगमन होगा| इस वर्ष शारदीय नवरात्र 10 अक्टूबर दिन बुधवार को चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग में आरंभ होकर 19 अक्टूबर दिन शुक्रवार को विजया दशमी के साथ संपन्न होगा|

इस नवरात्र में माता अपनों भक्तो को दर्शन देने के लिए नाव पर आ रही है इसका फल सर्व कल्याणकारी होता है  और माता के इस शुभ आगमन से श्र्धलुओ की मनचाहा वरदान और सिद्धि की प्राप्ति होगी  इसके साथ ही माता की विदाई हाथी पर होगी जिसका फल अत्यंत लाभकारी एवं सुख दायक होता है इस लिहाज से माता का आगमन व गमन दोनों सुखद है।

शास्त्रों के अनुसार नवरात्र व्रत-पूजा में कलश स्थापन का महत्व सर्वाधिक है, क्योंकि कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों, षोडश मातृकाओं, चौसठ योगिनियों सहित सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास रहता है, इसीलिए विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है। नवरात्रि में कलश स्थापना का खास महत्व होता है। इसलिए इसकी स्थापना सही और उचित मुहूर्त में ही करनी चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है। और परिवार में खुशियां बनी रहती हैं। घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि को किया जाएगा। जो चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग में संपन्न होगा |

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 10 अक्टूबर को कलश स्थापना व ध्वजारोपण के लिए शुभ समय अभिजीत मुहूर्त दिन में 11.37 से 12.23 बजे तक किया जा सकेगा। शास्त्र के अनुसार, ‘चित्रावय धृतियोगे निषेधानुरोधेन अभिजिन्नमुहूर्त:’ अर्थात चित्रा व वैद्धति का योग प्रात:काल में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को बन रहा हो तो अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापन करना चाहिए। महानिशा पूजा 16 अक्टूबर को निशीथ काल में किए जाएंगे।