कभी लालबत्ती वाली गाडी में घूमा करती थी यह महिला, आज पेट भरने के लिए चराती है बकरियां

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इसमें कोई शक नहीं कि जब किसी व्यक्ति का बुरा समय आता है, तब वह कोई भी काम करने के लिए मजबूर हो जाता है. जी हां फिर भले ही वह काम कितना भी छोटा क्यों न हो, लेकिन पैसो के लिए उसे वह काम करना ही पड़ता है. वैसे भी इस दुनिया में किसी भी इंसान की किस्मत बदलने में देर नहीं लगती. बरहलाल किस्मत का खेल किसी भी अमीर व्यक्ति को गरीब और किसी भी गरीब व्यक्ति को अमीर बना सकता है. गौरतलब है कि आज हम आपको ऐसी ही एक घटना से रूबरू करवाने जा रहे है, जिसके बारे में जान कर आप भी हैरान रह जायेंगे.

जी हां इस घटना के बारे में जानने के बाद आपको समझ आ जाएगा कि वास्तव में किस्मत कभी कभी बहुत बुरी चीज होती है. दरअसल यह घटना शिवपुरी बदरवास की है. बता दे कि यहाँ एक लड़की रहती थी. जिसका नाम जूली है. गौरतलब है कि एक समय ऐसा भी था जब जूली यहाँ की जिला अध्यक्ष थी. मगर अफ़सोस कि किस्मत ने ऐसा खेल खेला कि लाल बत्ती वाली गाडी में घूमने वाली जूली सीधा सड़को पर आ गई. बता दे कि एक समय वो भी था जब सब लोग उसे मैडम मैडम कह कर पुकारते थे. हालांकि अब लोग उसे बुलाने से भी कतराते है.

यानि अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो जिला अध्यक्ष के रूप में काम करने वाली जूली आज गुमनामी की जिंदगी जी रही है. जी हां वह अपने परिवार के पालन पोषण के लिए रामपुरी के गांव लुहारपुरा में मेहनत मुशक़्क़त कर रही है. बता दे कि आज उसका जीवन गरीबी की रेखा से भी नीचे आ चुका है. हालांकि जूली को इंदिरा आवास योजना के तहत रहने के लिए घर तो मिला लेकिन बढ़ते हुए भृष्टाचार के कारण वह घर उसका नहीं हो पाया. यही वजह है कि आज जूली अदद आवास तक की मोहताज हो चुकी है. गौरतलब है कि जिला पंचायत सदस्य बनने से पहले जूली मजदूरी का काम किया करती थी.

बरहलाल जिला पंचायत की सदस्य बनने के बाद शिवपुरी के पूर्व विधायक वीरेंद्र रघुवंशी ने उसे जिला पंचायत अध्यक्ष बना दिया. ऐसे में पांच साल तक तो लोग उसका खूब सम्मान करते रहे और उसे मैडम कह कर पुकारते रहे, लेकिन आज वही मैडम भेड़ बकरी चराने के लिए मजबूर हो चुकी है. बता दे कि उसकी झोपडी सरकारी जमीन पर बनी हुई है और अब उसका वहां रहना सम्भव नहीं है. वही जूली के अनुसार इस योजना की क़िस्त तो उसे जारी कर दी गई है, लेकिन अब तक उसे एक पैसा भी नहीं मिला है. यही वजह है कि अब तक उसका घर भी नहीं बन पाया है.

गौरतलब है कि आज कल वह चालीस बकरियों को चरा कर ही अपने घर का पेट पाल रही है. वही जब बकरियां नहीं होती, तब वह मजदूरी करती है. हालांकि जब उसके पास मजदूरी का काम नहीं होता तब उसे परिवार का पेट पालने के लिए गुजरात भी जाना पड़ता है. इस बारे में जूली का कहना है कि जिन लोगो ने उसे ऊँची पोस्ट दिलवाई थी, अब वह भी उसे नहीं पहचान रहे है. वही जो झोपडी उसे रहने के लिए दी जा रही है, वह इंसान तो क्या जानवरो के रहने लायक भी नहीं है.

बरहलाल हम तो यही उम्मीद करते है कि जूली को उसका सम्मान वापिस मिल जाएँ.